अमेरिका। अब चांद पर परमाणु होड़ होने की संभावना बन रही है। अमेरिका ने चांद पर 2027 तक परमाणु बिजली संयत्र लगाने का ऐलान कर दिया है। हाल ही में जारी अमेरिका की अंतरिक्ष नीति निदेशिका- 6 (एसपीडी- 6) में कहा गया है कि चांद की सतह पर परमाणु विखंडन ऊर्जा सिस्टम लगाया जाना चाहिए। ये सिस्टम ऐसा होना चाहिए, जिससे 40 किलोवाट या उससे ज्यादा बिजली पैदा हो सके। एसपीडी- 6 में अंतरिक्ष के लिए अमेरिका की ऐसी ही राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा और संचालन रणनीति बनाने की सोच शामिल की गई है। नुकसान की चिंता किए बिना वर्चस्व जमाने की कोशिश इस खबर पर चीन में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। चीन की मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि अमेरिका की इस महत्त्वाकांक्षा से भविष्य में चांद पर सैनिक होड़ होने की स्थिति पैदा हो सकती है। इन रिपोर्टों में आरोप लगाया गया है कि अमेरिका बिना इस बात की चिंता किए कि इससे कितना नुकसान होगा, अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि अमेरिका ने यह कहा है कि उसका मकसद चांद पर लंबे समय तक रहने के लिए जरूरी ऊर्जा की आपूर्ति और वहां से मंगल ग्रह के बारे में खोज को सहायता देना है, लेकिन चीन सरकार के सूत्रों की राय है कि इसके पीछे अमेरिका का मकसद सैनिकों की मौजूदगी है। चांद का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में करेगा अमेरिका: चीन इस बारे में चीन सरकार से जुड़े अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने चीन के एक सैन्य विशेषज्ञ की राय छापी है। इसके मुताबिक चांद पर हीलियम गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। उसका इस्तेमाल परमाणु विखंडन के लिए किया जा सकता है। उस विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका ने चांद पर मौजूद परमाणु सामग्रियों का दोहन कर परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की बात कही है, लेकिन आखिरकार वह चांद का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के स्थल के रूप में कर सकता है।
आम सहमति के खिलाफ है यह कदम
चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान में प्रोफेसर ली हाइदोंग ने कहा है कि अंतरिक्ष में अपनी बढ़त कायम करने की ये योजना अमेरिका के एकतरफा कदम उठाने के नजरिए को जाहिर करता है। यह अंतरिक्ष के इस्तेमाल के बारे में बनी अंतरराष्ट्रीय आम सहमति के खिलाफ है। वेबसाइट ‘द यूरेशियन टाइम्स’ के मुताबिक उन्होंने कहा कि 1979 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चांद संधि को मंजूरी दी थी। उसमें कहा गया था कि चांद या किसी अन्य खगोलीय पिंड पर कोई देश कब्जा कर अपनी संप्रभुता जताने की कोशिश नहीं करेगा। अमेरिका उस संधि में शामिल नहीं हुआ था, लेकिन अभी तक कमोबेश उसने इस संधि में तय नियमों का पालन किया है। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन उसे धता बताने की कोशिश कर रहा है। अब ये देखने की बात होगी कि क्या अगले महीने सत्ता संभालने के बाद जो बाइडेन प्रशासन भी इसी नीति पर चलता है या इस बारे में कोई अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने की कोशिश करता है। फिलहाल, ‘एसपीडी- 6’ से अमेरिका और चीन के बीच टकराव का एक और मुद्दा सामने आ गया है।