यरुशलम : इजरायल में 12 वर्षों के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की विदाई हो गई है. विपक्षी नेता और गठबंधन दलों के उम्मीदवार नफ्ताली बेनेट ने इजरायल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है. नई सरकार के शपथ लेने के साथ ही पिछले 2 वर्षों में 4 बार चुनाव होने के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट का भी समाधान हो गया है.
नई सरकार की पुष्टि के लिए इजरायल की संसद ‘नेसेट’ में जोरदार हंगामा हुआ. सत्र शुरू होने पर नामित पीएम नफ्ताली बेनेट से धक्का-मुक्की की गई. बेनेट ने जैसा ही अपना भाषण शुरू करने का प्रयास किया, अन्य नेता द्वारा उन्हें बार-बार परेशान किया गया. भाषण के दौरान विपक्षी बेनेट पर चिल्लाना जारी रखते हैं और उनके लिए अपराधी व झूठा शब्दों का प्रयोग करते हैं. वहीं, नई सरकार में सहयोगी पार्टी के नेता लैपिड ने तो भाषण ही छोड़ दिया. उन्होंने धक्का-मुक्की की घटना को लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला बताया.
उधर, संसद में बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि मैं यहां लाखों इजरायलियों की ओर से खड़ा हूं, जिन्होंने मेरे नेतृत्व में Likud पार्टी को वोट दिया और अन्य लाखों इजरायलियों ने दक्षिणपंथी दलों को वोट दिया. नेतन्याहू कहते हैं, ”अपने प्यारे देश के लिए रात-दिन काम करना मेरे लिए सम्मान की बात थी.” बेनेट के भाषण के विपरीत, नेतन्याहू की टिप्पणियों के दौरान ज्यादातर माहौल शांत रहा. बता दें कि इजरायल में एक छोटी अल्ट्रानेशनलिस्ट पार्टी के प्रमुख नफ्ताली बेनेट प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया है.
सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल 8 छोटे-छोटे दल नेतन्याहू का विरोध करने और नये सिरे से चुनाव कराने के खिलाफ एकजुट तो हुए हैं लेकिन ये दल बहुत कम मुद्दों पर आपस में सहमत हैं. वहीं भ्रष्टाचार के मामले में फंसे नेतन्याहू संसद में अभी भी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष बने हुए हैं.
कहा जा रहा है कि वे नई सरकार का पुरजोर विरोध करेंगे. ऐसे में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल अगर एक भी दल अगर पीछे हटता है तो नई सरकार अपना बहुमत गंवा देगी और सरकार गिरने का जोखिम पैदा हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो नेतन्याहू को सत्ता में लौटने का मौका मिल सकता है. इजरायल की संसद ‘नेसेट’ में 120 सदस्य हैं. ऐसे में कम से कम 61 मतों के बहुमत से सरकार बन जाएगी.
बात अगर नेतन्याहू की करें तो उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों का दावा करते हुए खुद को एक विश्व स्तरीय राजनेता के रूप में दिखाया है. उन्होंने अरब और अफ्रीकी देशों के साथ भी संबंध बनाए हैं, जिन्होंने लंबे समय से फिलिस्तीनियों के प्रति अपनी नीतियों पर इजरायल को दूर रखा था. लेकिन उन्हें जो बाइडेन प्रशासन से एक बहुत ही शांत स्वागत मिला है.
हालांकि, अब एक राजनीतिक जादूगर के रूप में उनकी प्रतिष्ठा देश में ही फीकी पड़ गई है, जहां वे एक गहरे ध्रुवीकरण वाले व्यक्ति बन गए हैं. आलोचकों का कहना है कि उन्होंने लंबे समय से फूट डालो और जीतो की रणनीति अपनाई है, जिसने यहूदियों और अरबों के बीच और अपने करीबी अति-रूढ़िवादी सहयोगियों और धर्मनिरपेक्ष यहूदियों के बीच इजरायली समाज में दरार को बढ़ा दिया है.