इंदौर। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों को लेकर मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष चल रही जनहित याचिका में सोमवार को अंतिम बहस हो सकती है। शासन याचिका में पहले ही जवाब दे चुका है। शासन का कहना है कि शासकीय अस्पतालों में मरीजों को दवाईयां निश्शुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं। शासकीय अस्पतालों में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की आवश्यकता ही नहीं है। याचिका में पिछली दो सुनवाई से अंतिम बहस टल रही है। उम्मीद है कि सोमवार को कोर्ट अंतिम बहस सुन ही लेगी।
सरकार पहले ही कह चुकी है कि शासकीय अस्पतालों में निश्शुल्क उपलब्ध हैं दवाइयां, इसलिए वहां केंद्रों की आवश्यकता नहीं।
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र
हाई कोर्ट में यह जनहित याचिका एडवोकेट विनोद द्विवेदी ने दायर की है। याचिका में कहा है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र एक अच्छी योजना है। इसके माध्यम से आमजन को सस्ती दवाईयां उपलब्ध हो रही है। सरकार ने जगह-जगह ये जन औषधि केंद्र खोले हैं, लेकिन सरकारी और निजी अस्पतालों में इन केंद्रों को नहीं खोला गया है। जबकि इनकी सबसे ज्यादा आवश्यकता वहीं होती है। सरकार ने याचिका में दो बार जवाब दिया है।
पहले जवाब में शासन ने कहा था कि मध्य प्रदेश में 267 जन औषधि केंद्र संचालित हो रहे हैं। शासन ने इन केंद्रों की सूची भी याचिकाकर्ता को दी थी। इस जवाब पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति दर्ज कराते हुए तर्क रखा था कि शासन मुद्दे से भटक रहा है। याचिका में सरकारी और निजी अस्पतालों में केंद्र नहीं खोले जाने का मुद्दा है, जबकि शासन केंद्रों की संख्या बता रहा है। इस पर कोर्ट ने शासन को दोबारा जवाब देने के लिए कहा था।
शासन दूसरी बार दिए अपने जवाब में कह चुका है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की सरकारी अस्पतालों में जरूरत ही नहीं है, क्योंकि शासकीय अस्पतालों में मरीजों को दवाईयां शासन की तरफ से निश्शुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं। सोमवार को होने वाली अंतिम बहस के बाद ही तय होगा कि शासन को सरकारी अस्पतालों में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने के लिए बाध्य किया जा सकता है या नहीं।