हिंदी सिनेमा से लेकर ओटीटी तक कामुकता और उत्तेजना का बाजार जब तेजी से पनप चुका है तो साहित्य कैसे पीछे रह सकता है। किसी जमाने में साहित्य सिनेमा से आगे चलता था मगर अब साहित्य सिनेमा का मुंह ताक रहा है। ऐसे में सिनेमा में आ रही अश्लीलता से प्रेरित, हाल में प्रकाशित हुई एक किताब विवादों के घेरे में आ गई है। वाणी प्रकाशन की यह किताब है, कामुकता का उत्सवः प्रणय, वासना और आनंद की कहानियां। इसमें 19 कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हैं। संपादक हैं, जयंती रंगनाथन। पिछले साल इस किताब की योजना बनी थी, जिसमें स्त्री-पुरुष के प्रेम, कामनाओं और संसर्ग की कहानियां रखना तय हुआ था। लेखकों ने इसे ही ध्यान में रखते हुए कहानियां संपादक को भेजीं मगर बवाल शुरू हुआ जब किताब छप कर आई और लेखकों ने शीर्षक देखा। उन्होंने टाइटल में वासना और कामुकता जैसे शब्दों पर कड़ी आपत्ति जताई।
असल में दिसंबर में जैसे ही किताब प्रकाशित हुई और वाट्सएप ग्रुप में लेखकों के पास कवर का डिजाइन पहुंचा तो ‘कामुकता का उत्सवः प्रणय, वासना और आनंद की कहानियां’ शीर्षक को देखते ही किताब में शामिल कई लेखक भौचक्के रह गए। कई को यह शर्मिंदगी का एहसास कराने वाला नजर आया। हिंदी के पाठकों और सोशल मीडिया में हिंदी साहित्य को लेकर तमाम मुद्दों पर बड़ी-बड़ी बहसें करने वालों को भी सांप सूंघ गया। सब चुप्पी साध कर बैठ गए। कुछ निंदा कर रहे हैं तो कुछ दबी जुबान में उन लेखकों के बारे में चटखारे लेकर बातें करने लगे हैं, जिनकी कहानियां कामुकता का उत्सव में शामिल हैं। अब खबर है कि किताब में शामिल लेखक इसके शीर्षक पर संपादक से तीखा विरोध जता रहे हैं और शीर्षक न बदलने पर अगले संस्करण में अपनी कहानी वापस लेने की धमकी दे रहे हैं। संपादक-लेखकों के बीच वाट्सएप-वार चल रहा है।
क्या ये किताब घर में रख सकते हैं
संपादक-लेखकों के बीच चल रहे वाट्सएप वार में लेखिका जयश्री रॉय ने संपादक के नाम लिखा है कि वह किताब के मुद्दे को लेकर कई दिनों से परेशान चल रही हैं। उन्होंने बहुत भरोसे के साथ अपनी कहानी दी थी। उन्होंने लिखा कि किताब के कॉन्सेप्ट-पत्र में कुछ भी आपत्ति लगने जैसा नहीं था मगर अब किताब का शीर्षक-कवर देख कर अजीब लग रहा है। जयश्री ने साफ लिखा है कि आई एम नॉट कंफर्टेबल विद इट। उन्होंने यह भी बताया है जब किसी ने मुझसे पूछा कि क्या ऐसी किताब आप अपनी अलमारी में रख सकेंगी या अपने बच्चों को दिखा सकेंगी तो मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रत्यक्षा सिन्हा और प्रियदर्शन जैसे हिंदी के चर्चित लेखकों ने भी संपादक से शीर्षक पर कड़ी आपत्ति जताई है। इन सभी के अनेक कहानी संग्रह और उपन्यास आ चुके हैं और ये हिंदी जगत में प्रतिष्ठित नाम हैं। इस किताब की वजह से उन्हें साहित्य समाज में अपनी प्रतिष्ठा धूल में मिलती नजर आ रही है।
पोर्न कहानियों का संकलन नहीं
वाट्सएप वार में किताब की संपादक जयंती रंगनाथन ने नाराज लेखकों से कहा है कि यह पोर्न कहानियों का संकलन नहीं है। यहां स्त्री-पुरुष के प्रेम-संसर्ग और कामनाओं की रंगीन कहानियां हैं। इस किताब को लाने के पीछे मकसद यही था कि अब तक हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओं में बोल्ड या सेंसुअस कहानियां स्तर की लिखी जा रही हैं, तो हमारी भाषा में क्यों नहीं। उन्होंने किताब या इससे शीर्षक पर ओछा या सस्ता होने के आरोपों पर कहा कि मेरी उम्र और मेरा पद इस बात की इजाजत नहीं देते कि मैं इस तरह से सोचूं।
19 कामुक कहानियां
इस किताब में संपादक जयंती रंगनाथन समेत हिंदी के 19 लेखकों की कहानियां हैं जिनका विषय स्त्री-पुरुष के प्रेम-वासना के संबंधों से जुड़ा हैं। संग्रह में मनीषा कुलश्रेष्ठ (एडोनिस का रक्त और लिली के फूल), प्रत्यक्षा सिन्हा (अतर), जयश्री रॉय (एक रात), प्रियदर्शन (चाची), रोजा पू (जयंती रंगनाथन), मन की उलझन (दिव्य प्रकाश), कमल कुमार (सखी-सहेली), विपिन कुमार (सांप), अनगिनत परिधियों वाला वृत्त (गौतम राजऋषि), हंटिंग जोन (अणुशक्ति), नरेंद्र सैनी (छत सेक्स और साबुन), सोनी सिंह (खेल), प्रियंका ओम (विष्णु ही शिव है), इरा टाक (गोवा का पुराना चर्च, रिजर्व सीट और एक अकेला दिल), रजनी मोरवाल (नटिनी), डॉ. रूपा सिंह (आई विल कॉल यू), अनु सिंह चौधरी (प्यार का रंग पानी) और दुष्यंत (नवरात्र पूजा) की कहानियां शामिल हैं। पेपरबैक रूप में आई इस किताब का मूल्य 399 रुपये है।