Chief Minister Yogi Adityanath created a new history in UP. Many myths are broken, after 37 years, a new script has been written by giving power to BJP again.

यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रचा एक नया इतिहास . कई सारे मिथक टूटे, 37 साल बाद BJP को दोबारा सत्ता दिलाकर लिखी नई इबारत

यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  ने एक नया इतिहास लिखा है. कई सारे मिथक भी तोड़ते हुए योगी आदित्यनाथ ने 37 साल बाद बीजेपी  को यूपी की सत्ता पर लगातार दूसरी बार काबिज करने का इतिहास बना दिया है. 37 साल पहले कांग्रेस ने बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्धारित पांच सालों का कार्यकाल पूरा करते हुए फिर से बीजेपी की सत्ता में वापसी करते हुए पार्टी को ऐतिहासिक तोहफा दिया है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो यूपी में ऐसी उपलब्धि डॉ. संपूणार्नंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह और मायावती भी हासिल नहीं कर सकीं. यूपी के राजनीतिक इतिहास को देखें तो प्रदेश में 1951-52 के बाद से अब तक डॉ. संपूणार्नंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती मुख्यमंत्री बने, लेकिन इन्हें यह मौका दो अलग-अलग विधानसभाओं के लिए मिला.

चारों ओर बज रहा योगी का डंका

मुलायम सिंह यादव और मायावती दो बार से अधिक बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी पर इन नेताओं ने भी वह उपलब्धि हासिल नहीं की जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खाते में दर्ज हो गई है. पूरे देश में इस उपलब्धि को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डंका बज रहा है. वैसे भी देश के राजनेताओं की सूची में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले नंबर पर हैं. करीब ढाई दशक पहले जब वह उत्तर भारत की प्रमुख पीठों में शुमार गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बने तभी वह देश के रसूखदार लोगों में शामिल हैं. इसके बाद से तो उनके नाम रिकार्ड जुड़ते गये.

एक ही सीट से लगातार पांच बार सांसद बनने वाले पहले नेता हैं योगी

1998 में जब वह पहली बार सांसद चुने गये तब वह सबसे कम उम्र के सांसद थे. 42 की उम्र में एक ही क्षेत्र से लगातार 5 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम है. मुख्यमंत्री बनने के पहले सिर्फ 42 साल की आयु में एक ही सीट से लगातार पांच बार चुने जाने वाले वह देश के इकलौते सांसद रहे हैं. चार महीने बाद ही दोबारा वह सिरमौर बने.

तोड़ा ‘नोएडा’ वाला अजीबोगरीब मिथक

प्रदेश की राजनीति में अब तक माना जाता रहा है कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित नहीं रहती है. उसकी सत्ता में वापसी नहीं होती. इस कारण कुछ मुख्यमंत्री तो नोएडा जाने से बचते रहे. सपा मुखिया अखिलेश यादव तो नोएडा जाने से परहेज करते रहे. नोएडा में उद्घाटन या शिलान्यास के कार्यक्रम को लेकर वहां जाने की जरूरत पड़ी, तो अखिलेश यादव ने नोएडा न जाकर अगल-बगल या दिल्ली के किसी स्थान से इस काम को पूरा किया. इसके विपरीत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नोएडा जाने से डरने के बजाय वहां कई बार गए. उन्होंने नोएडा जाने के बाद भी लगातार पांच साल मुख्यमंत्री रहकर और बीजेपी को बहुमत से साथ फिर सत्ता में वापसी करते हुए इस मिथक को तोड़ दिया है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर में पूजा करने जाने को लेकर भी नेताओं का मिथक तोड़ा है.

यूपी के इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि नोएडा का यह मिथक साल 1988 से शुरू हुआ था. साल 1988 में राजनीति में सक्रिय नेता नोएडा जाने से बचने लगे, क्योंकि यह कहा जाने लगा था कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाती है. तब वीर बहादुर सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. वे नोएडा गए और संयोग से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई. नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया. वे 1989 में नोएडा के सेक्टर-12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन करने गए. कुछ समय बाद चुनाव हुए, लेकिन वे कांग्रेस की सरकार में वापसी नहीं करा पाए. इसके बाद कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथ भी ऐसा ही हुआ कि वे नोएडा गए और कुछ दिन बाद संयोग से मुख्यमंत्री पद छिन गया.

अखिलेश ने किया था नोएडा जाने से परहेज

राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्हें नोएडा में निर्मित एक फ्लाई ओवर का उद्घाटन करना था. पर, उन्होंने नोएडा की जगह दिल्ली से उद्घाटन किया. अखिलेश यादव ने भी पांच साल मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा जाने से परहेज किया. जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूरी तरह ध्वस्त कर दिया. वह पांच वर्षों के कई बार नोएडा गए और उन्होंने ने नोएडा को कई सौगतें दी. मुख्यमंत्री ने दो सौ से ज्यादा जनसभाएं और रोड शो किए. एक दिन में सात सात जनसभाएं कीं.

Scroll to Top