इंदौर । एम.वॉय.हॉस्पिटल में मेडिकल छात्र के द्वारा घायल मरीज का हाथ मरोड़ कर मारपीट की, गालीलोच की, इस मामले में की गई जांच में दोषी पाए गए मेडिकल छात्र ने जहरीला पदार्थ पी लिया, अब सवाल यह उठता है कि, हर वो व्यक्ति जिसने अपराध किया हो और वो ऐसा कदम उठा ले, तो व्यवस्थाएं सुधरेंगी क्या ? स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करके यह जांच भी होना चाहिए कही आत्महत्या करने की कोशिश, सजा से बचाव की साजिश तो नहीं ? अगर मरीज की जगह आपका पिता, बेटा या बेटी होते तो ? मरीज की फाईल में उसके एड्स पीड़ित होने का उल्लेख था |
ऐसे में सवाल यह उठता है कि — क्या डॉक्टर बिना फाईल पढ़ें, मरीज से पूछ कर ईलाज करते है ?
क्या घायल मरीज को, बेसुध की स्थिति में भी, दर्द को भूल कर, हर जांच करने वाले को स्वयं बताना होता है ” मैं एड्स पीड़ित हूं ?” क्यों नही डॉक्टरों को मरीज के माथे पर लिख देना चाहिए “ये मरीज एड्स पीड़ित है ?” फिर सरकार करोड़ों रुपए खर्च करके, यह प्रचार क्यों करती है, एड्स छूने से नही, फैलता, छूने से प्यार फैलता है ? सबसे बड़ा सवाल यह उठता है, अगर अपराध और पाप करने वाला हर व्यक्ति, अपने अपराध और पाप से बचने के लिए आत्मघाती कदम उठाने लगे तो व्यवस्था कैसे सुधरेगी ? कानून के मुताबिक कार्यवाही की व्यवस्था बचेगी ? इस मामले में जो दुनिया ने देखा, उस घटना को कोई भी नकार कैसे सकता है ? फिर उनको विश्वास और एक समान व्यवस्था की बात नही करना चाहिए, जो मरीज के साथ अमानवीयता करने वाले मेडिकल छात्र के बचाव में खड़े है, उनके परिजन के साथ कही ओर ऐसी घटना हो तो, घटना को अंजाम देने वाले के ऐसे तर्क को स्वीकार करेंगे ? सोच कर देखिए मरीज आपका पिता, बेटा होता तो ? वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है मेडिकल छात्र, एम.वॉय. के सार्वजनिक स्थान पर, जहा कई महिला, पुरुष है, उस स्थान पर निडिल लगे घायल मरीज के साथ मारपीट, गाली—गलोच कर रहा है, हाथ मरोड़ रहा है, एड्स जानबूझकर हाथ मरोड़ने से नही फैलता है क्या, फाईल में लिखी एड्स पीड़ित होने की जानकारी नहीं पढ़ने से फैलता है क्या ? है ना घोर आश्चर्य की बात ! ऐसे में हर प्रोफेशन के लोग, उस फ्रोफेशन के दोषी के बचाव में खड़े हो जाएंगे तो, व्यवस्था सुधार की बात करना भी बेकार लगती है | अपराध में सजा से बचाव की साजिश रचने के गलत इरादे से, आत्महत्या करने के प्रयास का एक प्रकरण भी दोषी मेडिकल छात्र पर दर्ज किया जाना चाहिए….
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