Basant Panchami 2022: Basant Panchami is a special day to remember Mother Saraswati and Lord Vishnu know the special significance what happened between Krishna and Arjuna

बसंत पंचमी 2022 : मां सरस्वती और भगवान विष्णु को विशेष रूप से याद करने का दिन है बसंत पंचमी, जानिए विशेष महत्व, कृष्ण और अर्जुन के बीच क्या हुई थी बात

यह पर्व बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है. बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है. इस अवसर पर प्रकृति के सौन्दर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है. वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नई कोपलें आने लगती है जो हल्के गुलाबी रंग की होती हैं. खेतों में सरसों की स्वर्णमयी कांति अपनी छटा बिखेरती है. ऐसा लगता है मानों धरती ने बसंत परिधान धारण कर लिया है. जौ और गेहूं पर इन दिनों बालें आनी प्रारंभ हो जाती हैं. पक्षियों का कलरव बरबस ही मन को अपनी ओर खींचने लगता है.

मां सरस्वती के साथ करें भगवान विष्णु की पूजा

बसंत पंचमी के दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है. इस दिन प्रातः काल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान नारायण का विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए. मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का बसंती वस्त्रों और पुष्पों से श्रृंगार किया जाता है तथा गाने बजाने के साथ महोत्सव मनाया जाता है. वाणी की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की आराधना का भी इस दिन विशेष महत्व है. शिशुओं को इस दिन अक्षर ज्ञान कराने की भी प्रथा है.

खेत का पहला अनाज देवता, अग्नि एवं पितरों को करते हैं अर्पण

ब्रज में भी बसंत के दिन से होली का उत्सव शुरू हो जाता है. राधा-गोविन्द के आनंद विनोद का उत्सव मनाया जाता है. यह उत्सव फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता है. इस दिन कामदेव और रति की पूजा भी होती है. बसंत कामदेव का सहचर है, इसलिए इस दिन कामदेव और रति की पूजा करके उनकी प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए. इसी दिन किसान अपने खेतों से नया अन्न लाकर उसमें घी और मीठा मिलाकर उसे अग्नि, पितरों, देवों को अर्पण करते हैं. सरस्वती पूजन से पूर्व विधिपूर्वक कलश की स्थापना करनी चाहिए. सर्वप्रथम भगवान गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके सरस्वती पूजन करना चाहिए. इस प्रकार बसंत पंचमी एक सामाजिक त्यौहार है जो हमारे आनंदोल्लास का प्रतीक हैं.

ऋतुओं में खिला हुआ फूल, उत्सव का क्षण बसंत

बसंत के बारे में एक वृतांत प्रचलित है जो कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था. एक बार अर्जुन ने भगवान कृष्ण से पूछा कि प्रभु किन भावों में आपको देखूं? कहां आपके दर्शन होंगे? तब कृष्ण कहते हैं कि अगर तुझे मुझे स्त्रियों में खोजना हो तो तू कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा में मुझे देख लेना. मैं गायन करने योग्य श्रुतियों में बृहत्साम, छंदों में गायत्री छंद तथा महीनों में मार्गशीर्ष का महीना, ऋतुओं में बसंत ऋतु  हूं. अंतिम, बसंत ऋतु पर दो शब्द हम ख्याल में लें. ऋतुओं में खिला हुआ, फूलों में लदा हुआ, उत्सव का क्षण बसंत है. परमात्मा को रूखे-सूखे, मृत, मुर्दा घरों में मत खोजना. जहां जीवन उत्सव मनाता हो, जहां जीवन खिलता हो बसंत जैसा, जहां सब बीज अंकुरित होकर फूल बन जाते हो, उत्सव में, बसंत में मैं ही हूं. ईश्वर सिर्फ उन्हीं को उपलब्ध होता है, जो जीवन के उत्सव, जीवन के रस, जीवन के छंद में उसके संगीत में, उसे देखने की क्षमता जुटा पाते हैं. उदास, रोते हुए, भागे हुए लोग, मुर्दा हो गए लोग, उसे नहीं देख पाते, वे पतझड़ में उसे कैसे देख पाएंगे? बसंत में जो उसे देख पाते हैं वो तो उसे पतझड़ में भी देख लेंगे. बसंत का आगमन या बसंत का जाना होगा. लेकिन देखना हो तो, पहले बसंत में ही देखना उचित है.

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