भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक चिंताजनक प्रवृत्ति तेजी से उभर रही है – चिकित्सकों और रोगियों के बीच विश्वास की खाई लगातार गहरी होती जा रही है। आए दिन यह सुनने को मिलता है कि किसी रोगी की इलाज के दौरान मृत्यु हो जाने या चिकित्सा में किसी त्रुटि की आशंका मात्र पर उसके परिजन अस्पतालों में हंगामा खड़ा कर देते हैं। कई बार तो चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ के साथ मारपीट तक की नौबत आ जाती है, जिससे उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है। यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक संवेदनशील समाज के लिए बेहद चिंताजनक भी है।
चिकित्सा सेवा: सेवा या व्यवसाय?
यह स्वीकार करना आवश्यक है कि चिकित्सा सेवा आज के दौर में सिर्फ सेवा नहीं रही, बल्कि एक लाभकारी व्यवसाय का रूप भी ले चुकी है। शासकीय सेवाओं में कार्यरत कुछ चिकित्सक अपने घरों पर रोगियों का निजी इलाज कर उनसे अतिरिक्त धन अर्जित करने में रुचि लेते हैं। वहीं प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम्स में रोगी और उसके परिजनों की आर्थिक स्थिति के आधार पर उपचार की गुणवत्ता निर्धारित होती है। इस कारण समाज में यह भावना घर कर गई है कि चिकित्सा अब सेवा न रहकर महज मुनाफे का जरिया बन चुकी है।
लेकिन यह भी एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि देश में आज भी एक बड़ा चिकित्सक वर्ग ऐसा है जो पूरी निष्ठा, समर्पण और सेवा भावना के साथ रोगियों का इलाज करता है। वे अपना जीवन चिकित्सा सेवा को समर्पित कर देते हैं। ऐसी ही भावना नर्सों, वार्ड बॉयज़ और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों में भी देखने को मिलती है। यह वर्ग बिना किसी भेदभाव के दिन-रात रोगियों की सेवा में जुटा रहता है।
समाज की संवेदनहीनता और चिकित्सकों की उपेक्षा
इन सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, यह देखना अत्यंत दुखद है कि समाज धीरे-धीरे चिकित्सकों के प्रति असंवेदनशील होता जा रहा है। किसी एक या कुछ चिकित्सकों की लापरवाही या अनुचित व्यवहार के चलते पूरे चिकित्सक समुदाय को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। जबकि ऐसा आकलन न केवल अनुचित है, बल्कि न्यायपूर्ण भी नहीं है।
समाज को यह समझना होगा कि चिकित्सक भी एक मनुष्य हैं, उनकी भी सीमाएं हैं। जब एक चिकित्सक पर 10 से 20 रोगियों का भार एक साथ डाल दिया जाता है, तो स्वाभाविक रूप से वह मानसिक और शारीरिक रूप से थकान का अनुभव करेगा। ऐसे में उसका चिड़चिड़ापन या व्यवहार में परिवर्तन स्वाभाविक है। लेकिन इसके लिए उसे दोषी ठहराना अनुचित है।
मध्य प्रदेश की स्थिति और संसाधनों की कमी
मध्य प्रदेश सहित भारत के अनेक राज्यों में आज भी चिकित्सकों और तकनीकी स्टाफ की भारी कमी है। अस्पतालों में संसाधन तो मौजूद हैं, लेकिन उन्हें संचालित करने के लिए आवश्यक मानव संसाधन नहीं हैं। इस कारण रोगियों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं मिल पाता। दूसरी ओर, सीमित चिकित्सकों पर अत्यधिक काम का बोझ होता है।
यह दुष्चक्र न केवल चिकित्सकों को तनावग्रस्त करता है, बल्कि रोगियों को भी असंतोष और असहायता की भावना से भर देता है। लेकिन समाधान चिकित्सकों को दोषी ठहराने में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार करने और चिकित्सकों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने में है।
चिकित्सकों पर हमले: एक सामाजिक कलंक
हाल ही में भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज परिसर में महिला डॉक्टर पर अश्लील टिप्पणी करने और मेडिकल स्टूडेंट्स की गाड़ियों में तोड़फोड़ करने जैसी शर्मनाक घटनाएं सामने आई हैं। यह न केवल महिला चिकित्सकों की गरिमा पर हमला था, बल्कि चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे पर भी आघात था।
इस घटना की जानकारी पुलिस प्रशासन को भी दी गई, लेकिन तत्काल कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यह रवैया उन लोगों का मनोबल गिराता है जो कठिन परिस्थितियों में भी चिकित्सा सेवा में लगे रहते हैं। जब ऐसे डॉक्टरों को समाज और प्रशासन का साथ नहीं मिलता, तो उनके भीतर की सेवा भावना धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है।
समाधान की दिशा में उठाए जाने वाले कदम
- सरकारी स्तर पर सुधार: सबसे पहले शासन-प्रशासन को चाहिए कि वह स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में संसाधनों और कर्मचारियों की संख्या बढ़ाए। इससे चिकित्सकों पर कार्यभार कम होगा और रोगियों को बेहतर सेवा मिलेगी।
- समाज की भूमिका: समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि चिकित्सक उनके शत्रु नहीं, बल्कि मित्र हैं। वे हमारी सेवा में अपने जीवन का बड़ा हिस्सा समर्पित करते हैं। जब वे किसी संकट या समस्या का सामना करते हैं, तो समाज को उनके साथ खड़ा होना चाहिए।
- चिकित्सकों का व्यवहार: दूसरी ओर, चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी यह आवश्यक रूप से समझना होगा कि उनका व्यवहार रोगियों के प्रति सहयोगात्मक और संवेदनशील होना चाहिए। यह विश्वास निर्माण की दिशा में पहला कदम होता है।
- सुरक्षा के उपाय: अस्पताल परिसरों में असामाजिक तत्वों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। चिकित्सकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्रशासन की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।
यदि हम चाहते हैं कि हमारा स्वास्थ्य सेवा तंत्र सशक्त और भरोसेमंद बने, तो हमें चिकित्सकों और रोगियों के बीच की खाई को पाटना होगा। चिकित्सक और समाज दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकताओं और सीमाओं को समझना होगा। समाज को चाहिए कि वह चिकित्सकों के लिए सहानुभूति और सहयोग का भाव रखे, ताकि वे भी रोगियों की सेवा को अपने कर्तव्य से आगे, अपने धर्म के रूप में निभा सकें।
जब समाज और चिकित्सक एक-दूसरे का सम्मान और सहयोग करेंगे, तभी एक सकारात्मक और प्रभावी स्वास्थ्य तंत्र का निर्माण संभव हो पाएगा – जो न केवल रोगियों की पीड़ा को दूर करेगा, बल्कि चिकित्सकों को भी एक गरिमामयी कार्यस्थल प्रदान करेगा।